योगदान देने वाला व्यक्ति

17 अक्तूबर 2012

Jhumki


आज फिर झुमकी रो पड़ी ............आंसू टप-टप बह रहे थे . अहसासों का कोर कोर मानो  लहुलुहान था , आखिर क्यों उसका हुक्का-पानी बंद कर दिया मोहल्ले वालो ने     
 मन के आंसू  धुधली छाया लिए  उसे बीते साल की यादो मे ले गये   ........ सब मोहल्ले वालिया  नुक्कड़ पर खड़ी थी      कभी इसकी कभी उसकी   बुराई की जा रही थी  . उसको कतई पसंद नही था यह सब करना  जब उसको सबने आवाज लगायी तो उसने आने से मना कर दिया   के घर में ढेरो काम पड़े  हैं मुझे ट़ेम नही यहाँ आने का     . बचपन से अपनी किताबो मे घुसी रहने वाली झुमकी मोहल्ले की सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी ओंरत थी  . हर  वक़्त मोहल्ले के चोराहों पर आते जाते आदमियों की नज़रो का स्वाद बन'ने की अपेक्षा उसको सिलाई करना पसंद था     घर का हर कोना उसकी सुघड़ता   की गवाही देता था . छोटे से घर में अपने दो बेटो के साथ बहुत खुश रहती थी  हर  मिया-बीबी की तरह किसनवा से लड़ भी लेती थी  तो बच्चो की शरारत पर उनको पीट भी देती थी हर तरह से आम  औरत थी बस यह चौराहा   उसको पसंद नही था . धीरे धीरे मोहल्ले की ओरते जो कभी उस से बात करने मे फख्र महसूस करती थी  अब उसको घमंडी कहने लगी उसके सुथरे कपडे सबकी आँखों मैं खटकने लगे सबके मर्द" झुमकी को देख जरा "कहकर अपनी बीबियो    को चार बात कहने लगे थे . पिछले बरस उसने गीतली के घर कीर्तन मैं सुमनी को उसकी सास/पति  की बुराई करने से टोक दिया  तो सबने उसको स्पेशल ओंरत का तमगा पहना दिया  जैसे सास/पति  की बुराई  करना हर औरत   का  अधिकार हैं  अब किसनवा अगर प्यार करता हैं तो क्या हुआ अगर गलत काम पर गुरियता भी हैं  जब बख्त आता हैं तो झुमकी भी तो उसको खूब सुना देती हैं  यह बात हर औरत  को समझ नही आती सबकी सब अनपद औरत  नारी मुक्ति आन्दोलन की नेता बनी फिरती हैं एक का मर्द मारे सब इकठ्ठी हो जाती हैं खुसर-फुसर करने को .पर झुमकी ने न कभी किसी को बुलाया न कभी किसी के यहाँ चुगली करने गयी .बस यही से उसको घमंडी कहा जाने लगा धीरे धीरे सब  को लगने लगा के  यह हमारे जैसे क्यों नही      और   


                                              आज  अरसे बाद उसने अपने घर मे माता का कीर्तन कराया .............. दो चार बुजुर्ग औरते   आई बाकि कीर्तन मण्डली वालियों ने भी अलग ढोलक बजा ली  के  बहुत बनती थी न  बजा ले घंटी  मंजीरा अपने आप .............किसी ने नही सोचा शक्ति औरत में  खुद विराजमान  हैं .........क्यों इक दुसरे की दुश्मन बनी हैं वोह ...............  क्या कसूर रहा उसका . क्यों नही वोह एक आम ओंरत बनकर सबकी बातो का काट  पाती . क्यों नहीं  सबके सामने कुछ और  पीछे कुछ और बन जाती हैं  क्यों आज वोह अकेली हैं माँ के इस दरबार मैं . क्या खुद को बदल डाले या इस मोहल्ले को या फिर खुद मैं शक्ति बन जिए . डोल गया आज उसका मन का विश्वास ............... जार जार रोता रहा आज झुमकी  के मन का कोना ..........साथ ही हर उस ओंरत के मन का कोना जो खुद मैं जीना चाहती हैं  और ढूढ़ रहा हैं अपने अच्छे होने के सवाल का जवाब ................................

20 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

kitni bhi koshish karlu spell mistakes ho hi jati hu Sorry frds

रश्मि प्रभा... ने कहा…

लोग,फैसला ... ईश्वर बनकर सब फैसला कर रहे ... आश्चर्य !

nayee dunia ने कहा…

बहुत सुन्दर ...जवाब सिर्फ हमारे अंतर्मन में ही होता है कोई क्या देगा

Unknown ने कहा…

or jab ander se vishwas dol jata hain to man bahar jawab dhoodhta hain ...thnx Upasna

सदा ने कहा…

सच कहा है आपने ... बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

Unknown ने कहा…

Thank you so much Sada

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

kahan wo ho pata hai, jo jhumki jaisee aurten chahtee hai... ye nadaan samaj aage badhne se har pal rokta hai...
bahut behtareen...

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत गहन भाव लिए है आपके कहानी...
अनचाहे साथ से बेहतर है एकाकी होना....और ईश्वर तो सदा हमारे साथ हैं ही...कीर्तन में मंडली और दोगले भक्त न सही देवी माँ खुद जो विराजमान हैं....झुमकी के ह्रदय में...

अनु

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma ने कहा…

Thank you so much Mukesh kumar Sinha jee

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma ने कहा…

अनचाहे साथ से बेहतर है एकाकी होना... bahut sahi kaha aapne ............ Thank you so much Anju jee

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma ने कहा…

Thank you much Rashmi jee .......sahi kaha aapne log aajkal khud bhagwan ban rahe hain

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

आपकी यह बात तो एकदम सच्ची है,,,
जो लोग मंडली में बैठकर चुगली नहीं करती,इससे अच्छा वो अपने घर के काम करती है तो लोग उसे घमंडी कहते है...
कोई बात नहीं ऐसे लोगो के साथ रहने से तो अच्छा है एकाकी जीवन...बहुत अच्छी कहानी.....

S.N SHUKLA ने कहा…


सुन्दर सामयिक और सार्थक पोस्ट, आभार.

कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा.

Unknown ने कहा…

Thank you Reena morya

Unknown ने कहा…

S.N.Shukla jee shukriyaa

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

ऐसी भीड़ से बेहतर है अपने आप को खोजना ... प्रेरक कहानी

Madan Mohan Saxena ने कहा…

बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma ने कहा…

Thank you so much Madan Mohan jee

Neelam ने कहा…

Jhumki... koi kuchh bhi kahe. kuchh bhi soche tum jesi ho bas wesi hi rehna..Neelima ye kahani mujhe apni si hi lagi, aur aankhe'n nam ho gayin. behadd sundar abhivyakti ke liye badhaayi.

Unknown ने कहा…

thnx Neelu .Rachna tabhi sarthak jab woh kisi ko apni lage