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14 मई 2013

चुन्नी के किनारे

भरे पूरे परिवार में माँ आ ज भी अकेली थी  .बेटियाँ  अपने अपने घरो में
थी अब सुखी थी या दुखी थी माँ नही जानती क्युकी उन्होंने  कभी माँ से कहा
ही नहीकि हमारेससुराल में यह बात हुयी वो  बात हुयी सबने  अपना भाग्य मान
कर जो मिला स्वीकार कर लिया
 और अब तो सबने खुश भी देखाना शुरू कर दिया था   रेशमी चुन्निया  पर कब
तक आंसू सोखती हैं  और माँ की आँखे  कब तक सच से अनजान रहती हैं    माँ
की आँखे पढने लगी काले होते घेरो में छिपे राज   /  फीकी सी हंसी में
छिपे दर्द को


      अब माँ भी बहु ले आई थी   इकलोती बहु के चाव सबको थे चाहे माँ थी
या पापा  . बहने एक -दो दिन को आती   रहेगी  घर तो बहु का होता हैं
सोच माँ ने सारी ग्रहस्थी  बहु को  सौंप  दी / नए ज़माने की बहु  जिसके
लिय आटा घूधना मनिक्योरे का ख़राब होना था / सब्जी बनाने से मसाले की महक
उसके डियो   की महक को ख़तम कर देती थी /. दिन भर घूमना   और  सज संवर कर
पति को  रिझाना  बस यही उसकी जिंदगी का मकसद  हो   जैसे . पति ने अपने
ऑफिस में उसको  नौकरी दिला  दी अब वोह कम काजी महिला थी   अब  माँ  घर का
काम करती   बेटे  की माँ रानी   अब घर की नौकरानी  बनकर रह  गयी  घर में
विलासि ता का सामान बढ़ ने लगा  और इंसानों का मान घटने लगा

 गर्मिया हैं  बेटियाँ आरही हैं  छुट्टियों में ३ दिन के लिय   अपने घर
बार भी हैं उनके  .. बहु शिमला  चली गयी उस को भीड़ पसंद नही न ही दिन रात
का शोर  उसको सुकून  चाहियी  .....माँ अब  खाना बना रही हैं जल्दी जल्दी
 सब आने वाली हैं ..... उसको भी खुद को खुश देखाना हैं  आखिर माँ हैं वोह
भी  बेटियों से कम थोड़े हैं किसी भी बात में .......................
                                                      अब बेटियाँ भी पढ़
कर भी चुप हैं माँ की सूती

चुन्नी के किनारे भीगे देख कर