"सुन बिटिया , समय से गर्म कपड़ो को धूप दिखा देना, कुँवरजी को बादाम जरुर भिगोकर देना आदमी लोग खुद कुछ नही मांगते खाने को , मैं ठीक हूँ फ़िक्र ना करना बस रात को जरा घुटने दर्द करते हैं और हाँ ख़त का जवाब जरुर देना एक आस लगी रहती हैं डाकिये के आने पर . आज फ़ोन आया हैं कि माँ बहुत बीमार हैं और उसने मना किया हैं बिटिया को सूचना देने के लिए कि नाहक परेशान करोगे उसको .खुश रहने दो .........जाने की तैयारी करते हुए पुराने संदूक से उनके लिखे ख़त मिले हैं और पढ़ रही हूँ एक एक ख़त जिनको मैंने पहले कभी सही से पढ़ा भी नही और माँ ने कितनी शिद्दत से चाहा होगा उनका जवाब "कब से तेरी चिठ्ठी नही आई कम से कम कुशल मंगल का ख़त तो लिख दिया कर , मुझे फ़िक्र लगी रहती हैं तेरे हरदम " माँ ने मीठे उलाहने देते हुए फ़ोन पर कहा था एक बार तो हंस पढ़ी थी निम्मी " माँ जब मेरा ख़त ना आये तो समझ लेना मैं बहुत खुश हूँ , मुझे फुर्सत ही कहाँ हैं तुमको याद करने की , जब उदास होती हूँ तब ही ख़त लिखना याद आता हैं " कहने हुए निम्मी फिर से खिलखिला दी थी .और आज फफक फफक कर रो दी रिश्तो को भी सहेजा जा सकता हैं पुराने खतो की तरह पर उसने तो फ़ोन -ईमेल की तरह फौरीतौर पर लिया
हमेंशा , सच हैं हाथ से लिखे हुए लफ्ज़ संवेदनाओ से जुड़े होते हैं
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