नयी नयी कलम थामी थी उसने , सबने सराहना शुरू कर दिया था " तुम अच्छा लिखती हो , लिखा करो ना " पंखो ने परवाज़ भरनी शुरू की ही थी कि पति महोदय की आँखे घुमने लगी हर वक़्त उनकी भ्रकुटी तनी रहने लगी , बूढ़ी चिड़िया ने उनके सब काम वक़्त पर करने शुरू कर दिए , खाना पीना कपडे सब , ताकि कुछ पल जो वोह अपनी बंद मुठ्ठी में बिखरे शब्द अपने सामने फैला कर एक माला गूंधती हैं उसकी महक में खुद के जीने का सबब ढूढ़ सके , लेकिन सय्याद कैसे सहन कर सकता था जिस चिड़िया के पर उसने बरसो पहले काट दिए थे आज कटे पंखो से उड़ने की कोशिश करने लगी हैं , चिड़िया बेचारी भोली सी अनजान थी उसे लगता उसने सब कर्तव्य अच्छे से निभाये उम्र भर बच्चे भी ब्याह दिए हैं अब तो अपने लिय जी सकती हैं सब उसकी उड़ान देख कर खुश होने पर उसको शाबाशी देंगे , वक़्त के साथ चिड़िया में आत्म विश्वास आने लगा और लेखनी में ताक़त , आभासी दुनिया हैं स्त्री -पुरुष सब उसका लिखा पढ़ते और तारीफ़ करते , उसे साहित्यिक सस्थाओं में बुलाया जाने लगा लेखनी की बढती ताक़त को देख घर भर में खलबली मचने लगी उसका स्वतंत्र व्यक्तित्व कैसे बन जाए ? बहुत नागवार था अब उसका लिखना उसका किसी से बात करना .....पुरुष सय्याद ने अपनी चिरपरिचित चाल चली औरफेंकदिया पासा तुम चरित हीन होती जा रही हो चरित्रहीन लोगो से घिर रही हो .......... स्त्री घर छोड़कर माँ के घर आगयी , सब कुछ स्वीकार्य रहा पिछले ३० बरस में ,पर सवाल चरित्र का था अब बहु बेटो के सामने इस उम्र मैं ऐसे घिनौने इलज़ाम ...... बेटे भी माँ के विरुद्ध हो गये की उनकी पत्नियां भी ऐसी ही हो जायेगी तो ........... उम्र सपने तोड़ देती हैं उमरभर संजोये हुए .सिर्फ स्वालंबी न होने की वज़ह से
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