" ग्रहण "
उम्मीद ही नही थी कि कोई इतना चुप्पा हो सकता हैं | हॉस्पिटल के बरामदे में एक अकेला चुपचाप कल से शून्य को ताकता हुआ नजर आरहा था | आज उसे कैंटीन में देखा तो पूछ लिया
" किसके साथ आये हो यहाँ "
पलके ऐसे उठी जैसे ग्रहण लगा हो चाँद को और होंठो से लफ्ज़ निकले
' यादो के "
यादो के!!!इसका क्या मतलब "
" पिछले बरस आज के दिन मेरी माँ इसी हॉस्पिटल से अपनी अनंत यात्रा को गयी थी और मुझे भाई ने घर से बाहर निकाल दिया था आज माँ की बरसी हैं अपना कोई घर नही सो यहाँ माँ को मिलने आया हूँ "
अब मेरी सोच को जैसे ग्रहण लग गया
नीलिमा शर्मा निविया
उम्मीद ही नही थी कि कोई इतना चुप्पा हो सकता हैं | हॉस्पिटल के बरामदे में एक अकेला चुपचाप कल से शून्य को ताकता हुआ नजर आरहा था | आज उसे कैंटीन में देखा तो पूछ लिया
" किसके साथ आये हो यहाँ "
पलके ऐसे उठी जैसे ग्रहण लगा हो चाँद को और होंठो से लफ्ज़ निकले
' यादो के "
यादो के!!!इसका क्या मतलब "
" पिछले बरस आज के दिन मेरी माँ इसी हॉस्पिटल से अपनी अनंत यात्रा को गयी थी और मुझे भाई ने घर से बाहर निकाल दिया था आज माँ की बरसी हैं अपना कोई घर नही सो यहाँ माँ को मिलने आया हूँ "
अब मेरी सोच को जैसे ग्रहण लग गया
नीलिमा शर्मा निविया
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