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10 दिसंबर 2012

Mayka ( मायका )

सोफे पर पीठ टिकाये  निशा ने आँखे मूँद ली . पर आँखे मूँद लेने से  मन सोचना तो बंद नही करता न .  मन की गति पवन की गति से भी तेज होती हैं . एक पल मैं यहाँ तो दुसरे ही पल सात समंदर पार .,
एक पल मैं अतीत के गहरे पन्नो की परते उधेड़ कर रख देती हैं तो दुसरे ही पल मैं भविष्य  के नए सपने भी  देखना शुरू कर देती हैं .  निशा का मन भी  उलझा हुआ था अतीत के जाल में .  तभी फ़ोन की घंटी बजी 
" हेल्लो "
"हाँ जी बोल रही हूँ "
"जी"
 "जी "
" जी अच्छा"
" में उनको कह दूँगी "
 "आपने मुझसे कह दिया तो मैं  सब इंतजाम कर दूँगी ""
 "विश्वास कीजिये मैं  आप को  अच्छे से अटेंड करुँगी आप आये तो घर "
" यह तो शाम को ही घर आएंगे इनका सेल  फ़ोन भी  घर पर रह गया हैं "
"आप शाम को 7 बजे के बाद दुबारा फ़ोन कर लीजियेगा "
 "जी नमस्ते "

                                                                                           फ़ोन रखते ही पहले से भारी मन  और भी व्यथित हो उठा  एक नारी जितना भी कर ले  पर उसकी कोई कदर नही होती हैं   सुबह सुनील से निशा की बहस भी  उसकी बहन को लेकर हुई  थी  यह पुरुष लोग अपने रिश्तो के प्रति कितने सचेत होते हैं ना  स्त्री के लिए घर  आने वाले सब  मेहमान एक से होते हैं  परन्तु पुरुषो के लिय अपने परिवार के सामने उसकी स्त्री भी कुछ नही होती,न ही अपना घर , खाने के स्पेशल व्यंजन  होने चाहिए , पैसे पैसे को दाँत  से पकड़ने वाला पति  तब धन्ना सेठ बन जाता हैं  पत्नी दिन भर खटती  रहे  पर  उसपर अपने परिवार के सामने एकाधिकार एवेम आधिपत्य दिखाना पुरुष प्रवृत्ति होती हैं 
                                                            सुनील की बहन  रेखा  सर्दी की छुट्टियाँ   बीतने के लिय  उनके शहर आने वाली थी  सुनील चाहता था कि  उनका कमरा  एक माह के लिए उनकी बहन को दे दिया जाए   निशा इस बात के लिए राजी नही थी  पिछली बार भी दिया था उसने अपना कमरा  दीदी को रहने  के  लिए .....
                                                                                                              दिन भर रजाई में पड़े रहना  पलंग के नीचे मूंगफली के छिलके , झूठे बर्तन , गंदे मोज़े  निशा का मन बहुत ख़राब होता था  काम वाली बाई भी उनके तीखे बोलो की वज़ह से उस कमरे की सफाई  करने से कतराती थी . निशा के लिए सुबह स्नान के लिए  अपने एक जोड़ी  कपडे निकलना भी मुश्किल हो गया था तब .. उनके जाने के बाद जब निशा ने अपना कमरा साफ किया तो तब जाना था  उसके कमरे से अनेक छोटी छोटी चीज़े गायब थी  उसके कई कपडे ,  बिँदिया , पलंग के बॉक्स से चादरे ....
 मन खट्टा हो गया था उसका पिछले बरस  कि  अबकी बार आएँगी तो इनको अपना कमरा बिलकुल नही दूँगी सुनील मान लेने को तैयार ही न था  इस बार उनकी बहन छोटे कमरे में   रहे .
"                                                        निशा का मन अतीत में  जाता हैं अक्सर . मायका तो उसका भी हैं  वोह कभी दो दिन से ज्यादा के लिए नही गयी  सुनील का कहना हैं ....
".रही थी न 22 साल उस घर में    
अब भी तुम्हारा मन वहां ही क्यों रमता है ? 
अपना घर बनाने की सोचो बस !!
अब यही हैं तुम्हारा घर ..."
अब .जब भी जाती हैंमायके तो  अजनबियत का अहसास रहता हैं वहां , माँ बाबूजी उम्र के उस पड़ाव पर हैं जहा उनके शब्दों का कोई मोल नही अब , जैसा बन जाता हैं खा लेती हैं निशा  . बच्चे अगर जरा भी नखरे करे उनको आँखे तरेर कर चुप करा देती हैं  चलते  हुए माँ मुठ्ठी में बंद कर के  कुछ रुपये थमा देती हैं  और एक शगुन का लिफाफा 4 भाइयो की बहन को  कोई एक भाई " हम सबकी तरफ से " कहकर थमा देता हैं  ............न कुछ बोलने की गुंजाईश होती हैं न इच्छा .

                                       किस्मत वाली होत्ती हैं न वोह लडकिया  जिनको मायका नसीब होता हैं  जिनके मायके आने पर खुशिया मनाई जाती हैं , माँ की आँखों में परेशानी के डोरे नही खुशी के आंसू होते हैं 
टी वी पर सुधांशु जी महाराज बोल रहे थे  बहनों को जो मान -सम्मान मिलता हैं   जो नेग मिलता हैं  उसकी भूखी नही होती वोह  बस एक अहसास होता हैं कि इस घर पर आज भी मेरा र में आज भी हक हैं 
 निशा ने झट से आंसू पोंछे ,  फ़ोन उठाकर सुनील को  उनके दूकान  के नंबर पर   काल किया 
 "सुनो जी , बाजार से गाजर लेते आना , निशा दी कल शाम की ट्रेन से आ रही हैं  गाजर का हलवा बना  कर रख दूँगी उनके चुन्नू को बहुत पसंद हैं   "
  कमरे की चादर बदलते हुए  निशा सोचने लगी  ना जाने रेखा दीदी  ससुराल में किन परिस्तिथियों में रहती होगी  कैसे कैसे मन मारती होगी छोटी छोटी चीजो के लिए  . शायद यहाँ आकर उस पर अपना आधिपत्य दिखा कर उनका स्व संतुष्ट होता होगा . कम से कम किसी को तो मायका जाना सुखद लगे और खुश रहे उसके मन का रीता कोना !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! 


 नीलिमा शर्मा 

37 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

Kahi kahi har ladki ka yahi dukh hai ,kuchh milta jhulta sa ,jaane kyun betiyon ko parayadhan kahkar beghar kar deti hai dunia **

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

Sudhansu maharaj ke baato ka asar badi jaldi ho gaya...:)
waise agar ek stri dusre ki vyatha samajh jaye to fir kyaaa baat! hai na..
bahut behtareen...!
Neelima... aap me gajab ka talent hai, jo har din ek dum alag alag roop me dikh raha hai...!

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत अच्छी लगी कहानी ...औरत ही अक्सर दूसरी औरत की बात समझना नहीं चाहती है ....शब्द विन्यास बढिया है ..लिखती रहे ..

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

लगा ,जैसे मैं कहानी की नायिका हूँ :))

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

अंतिम पंक्तियाँ भावुक कर गईं .... अच्छी कहानी

http://anusamvedna.blogspot.com ने कहा…

ये हर स्त्री की कहानी लगती है बहुत सुंदर कहानी ....स्त्री के मन का एक कोना ....

nayee dunia ने कहा…

बहुत बढ़िया कहानी ....एक औरत ही दूसरी औरत को समझ सकती है ....आपने बहुत अच्छी तरह से एक नारी मन के सकारात्मक पहलु को उजागर किया है बधाई बहुत सारी

Pallavi saxena ने कहा…

वाकई नीलिमा जी अंतिम पंक्तियों ने गजब कर दिया...बेहद उम्दा रचना मन को छूते जज़्बात यूं तो हमेशा से ही ऐसे कई छोटे बड़े मामलों में स्त्री और पुरुष की मानसिकता में फर्क रहा है लेकिन जो बात अंतिम पंक्तियों में आपने कही वह केवल एक स्त्री ही महसूस कर सकती है।

Prabha ने कहा…

Dil ko chu gai ... kya likha hai aapne di... jaise har aurat ki kahani ho...

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma ने कहा…

सराहनीय शब्दों के लिए आपका आभार सीमा . यह पुराने ज़माने की रीत हैं कि बेटियाँ परायी होती हैं पर उनको परायेपन का अहसास इस ज़माने ने कराया हैं ...

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma ने कहा…

सराहनीय शब्दों के लिए आपका आभार मुकेश जी . हर नारी में सकारात्मक/ नकारात्मक दोनों पहलु होते हैं कभी कोई पहलू जीत जाता हैं कभी कोई

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma ने कहा…

सराहनीय शब्दों के लिय आपका आभार सीमा .नारी हमेशा से पराया धन रही है मायके में पर यह अहसास इस ज़माने में तल्खी से दिलाया गया है

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma ने कहा…

सराहनीय शब्दों के लिय आपका आभार सीमा .नारी हमेशा से पराया धन रही है मायके में पर यह अहसास इस ज़माने में तल्खी से दिलाया गया है

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma ने कहा…

विभा जी मेरी कहानी लिखना सफल रहा अगर किसी एक को भी कहानी में खुद का प्रतिबिंम्ब नजर आया ...... वर्तनी शुद्ध करने में आपकी सहायता का बहुत बहुत धन्यवाद

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma ने कहा…

विभा जी मेरी कहानी लिखना सफल रहा अगर किसी एक को भी कहानी में खुद का प्रतिबिंम्ब नजर आया ...... वर्तनी शुद्ध करने में आपकी सहायता का बहुत बहुत धन्यवाद

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma ने कहा…

संगीता जी बहुत बहुत धन्यवाद कहानी पढ़ कर महसूस करने का

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma ने कहा…

अनु जी कहानी पसंद का तहे दिल से धन्यवाद

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma ने कहा…

अनु जी कहानी पसंद का तहे दिल से धन्यवाद

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma ने कहा…

Thank you so much prabha

omiyk ने कहा…

नारी मन की एक दुविधा की बहुत अच्छी प्रस्तुति, नायिका द्वारा स्वयं की स्थिति मे पति की बहन को रख कर निर्णय करना वह बहुत सुंदर लगा॰ कहानी मे वास्तविक घटनाओं की सूक्ष्म बातों का समावेश, जैसे वो मोबाइल घर पर ही छोड़ गए हैं, इसके संदेश को सशक्त रूप मे प्रवाहित करता है॰

रमा शर्मा, जापान ने कहा…

bahut sunder ,dil ko chhunewali kahani hai neelima

Unknown ने कहा…

सराहनीय शब्दों के लिए आपका आभार Upasana jee

Unknown ने कहा…

सराहनीय शब्दों के लिए आपका आभार pallavi saxena jee

Unknown ने कहा…

Omiyk jee bahut bahut dhanywad kahani ko pasand karne ka

Unknown ने कहा…

Rama ..........thank u dear

Meenakshi Mishra Tiwari ने कहा…

bhaav poorna kahani
...

neetta porwal ने कहा…

waah .. sargarbhit vishay ...
sandesh deti sundar prastuti .. !!

vistrut soch se suvaasit ho uthta hai ghar sansaar ...
jis kushlta aur soojh boojh ka parichay diyaa ...naman aapki bhavnaao ko .. !!

manjul ramdeo ने कहा…

Bahut hi Achhi Story ...Dil ko choo gayi...

Unknown ने कहा…

सराहनीय शब्दों के लिए आपका आभार Meenaakshi

Unknown ने कहा…

सराहनीय शब्दों के लिए आपका आभार Manjul jee

Unknown ने कहा…

सराहनीय शब्दों के लिए आपका आभार Netta

प्रेम सरोवर ने कहा…

आपका यह पोस्ट अच्छा लगा। मेरे नए पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रिया की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी। धन्यवाद।

Ankur Jain ने कहा…

बहुत ही सुंदर कथा।।।

Unknown ने कहा…

shukriya mitro

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

kya bat hai? aaj padhi tumhari kahani . bahut sundar bhavanaon ka pravah banaye rakha hai.

Amitabh ने कहा…

Really a touching story. Though a male, but can feel the sentiments of a female going through. very nice story.

Unknown ने कहा…

आप सबको मेरी कहानी पसंद आई इसके लिय आप सबकी तहे दिल आभारी हूँ Rekha jee .Amitabh jee