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29 दिसंबर 2017

यह कैसा ममत्व

आज पुलकित थी रज्जो काकी उनके नाम एक ख़त जो आया था \ बार बार उस ख़त को छूकर फिर आँखों से लगाती फिर बोसा देकर सीने से लगा लेती बंद कर दिए थे अब सबने ख़त लिखने ईमेल , व्हाट्सअप्प पर सन्देश भेज देते थे , फ़ोन पर बात करते चेहरा देखते मिलना जुलना भी अब कम हो गया था | लेकिन बूढी रज्जो आज भी सिरहाने रखे खतो को खोलकर देखती लफ्जों को छूती जो उसके बब्बन ने दुबई से लिखे थे | अब तो बहु की मर्ज़ी होती तो बब्बन से बात करा देती थी नही तो उसके सामने ही बब्बन को कह देती " अम्मी सो रही हैं आप खामखा पैसे बर्बाद ना करो इंटरनेशनल कॉल हैं आपकी , बस मेरी बात सुनो ................और बाहर निकल जाती . अली देख रहा था बड़ी अम्मी को बहुत देर से और .करीब जाकर धीमे से बोला " किसका प्रेमपत्र आया बड़ी अम्मी " बड़ी अम्मी टूटे दांतों से पोपली हंसी हँसते हुए बोली "तेरे बाप का " दिखाओ तो जरा " ख़त की इबारत थी - आपके हाथ के आलू के पराठे खाने का मन कर रहा हैं अम्मी यखनी पुलाव भी बनाना इस जुम्मे को , आ रहा हूँ आपको मिलने अपने हाथ से कौर खिलाएगी न .... अली को याद आया अपनी अम्मी का कठोर चेहरा ........... तंग मत किया करो जो बने खाओ या चुपचाप मग्गी खा ले