"रमा यह सब क्यों हुआ मैंने कभी सोचा भी नही था ऐसा हाय रे मैं मर क्यों नही गया यह दिन आने से पहले!!!!!!!!!!!!!!! "
आंसू भरी आँखों से विकास ने रमा के झुर्रियो भरे हाथो को थामा और लाचारगी से उसकी तरफ देखने लगा .
कोने वाले कमरे के बिस्तर पर कृशकाय रमा विकास के कपकपाते हाथो को थामे टकटकी लगाये छत को देख रही थी
याद आने लगे उसको वोह पल जब उसने एक दुल्हन बन इस आँगन की दहलीज़ पर पाँव रखा था , 8 भाई-बहनों में 4 नम्बर की बहु थी वो ....तब जमाना ही अलग था . शादी तब सिर्फ पति से नही पूरे परिवार से होती थी .....पति से मन का मिलन हो न हो देह का मिलन हो जाता था और पूरे परिवार से मन मिले न मिले सर झुकाना पड़ता था . बहुत ही अरमान लेकर उसने भी अम्माजी की देहरी पर माथा टिकाया था ........
अम्मा जी पूरे रॉब-दाब वाली बेहद खुबसूरत महिला थी क्या मजाल थी कि कोई बहु या बेटा उनके सामने एक शब्द भी बोल जाये . चक्करघिन्नी सी घूमती सब बहुए दिन भर काम मैं लगी रहती जिसका काम अम्माजी का जरा भी नापसंद आता उसका रात को पति से पिट जाना लाजिमी था उस घर मैं .... यह रोज का तमाशा था बस सोचना यह होता था कि आज किसका नंबर लगेगा . किसी को किसी से कोई शिकायत नही किसी को किसी से कोई हमदर्दी नही थी .साल दर साल परिवार बढता गया जगह कम होने लगी तो अम्मा जी ने सबसे बड़े बेटे का चोका अलग कर दिया शादी के 5 साल बाद रमा को भी पति के संग चार बर्तन देकर "जाओ अपनी घर गृह्स्थी खुद बनाओ चलाओ "कह कर घर से बाहर का रास्ता देखा दिया गया था
कैसे एक कमरे मैं रमा ने अपने बच्चे पाले कैसे दिन भर लोगो के स्वेटर बन कर पैसे कमाए विकास को कुछ पता नही उसका काम था दिन भर दफ्तर मैं रहना उसके बाद अम्मा जी के घर हाजिरी ....लोटने तक बच्चे नींद में होते . कभी साथ बैठकर विकास ने दो मीठे बोल भी न बोले
ओरत दिन भर काम कर सकती हैं हैं . कम खा सकती हैं एक जोड़ी कपड़े मैं गुजरा कर लेगी बस शाम के वक़्त अगर पति दो मीठे बोल बोल दे . लेकिन यह बात हर पुरुष को कहाँ समझ मैं आती हैं .............जीवन का योवन वो दंभ मैं गुजर देता हैं कि कि मैं पुरुष हूँ सृष्टि का रच्येता!!! ओरत तो सिर्फ जमीन हैं .जबकि वोह ज़मीन ही 9 महीने तक उसके बीज को अपनी कोख में अपने खून से सींचती हैं और तभी उसको मिलता हैं अपना वारिस ....और उस वारिस को वोह गोद में लिए ऐसे खुश होता हैं जैसे सारा दर्द उसी ने झेला हो और उस नारी की पीडा को समझने के लिए उसके साथ तब भी किसी कोने वाले कमरे का अकेला सा बिस्तर होता हैं
रमा ने भी 4 बेटो को जना .खून का असर कहो या माहौल का बेटे बाप से भी सवा सेर निकले . बेटिया थी 4 जो उसके दुःख को जरा समझती थी . अन्दर से अकेली रमा को कब दिल का रोग लगा कोई नही जानता था . दिन थे के गुजर ही रहे थे ....आज घर मैं कोई कमी नही न पैसे की न जगह की बस कमी थी तो आज भी उस संवेदना की जो कभी इस घर के पुरुषो ने रमा को कभी दी नही .सब बेटे भी अब बीबियो वाले थे खुद चाहे आज भी बीबी को जूतों से पिट ले पर कोई उनको कुछ कहे तो एक दुसरे का सर फोड़ने को तैयार ...और आजकल की बहुये तो माशाल्लाह ...........खुद काम करे न करे .बेटो के सामने रमा को लपकती झपकती" कि माजी
बेठो न हम हैं काम करने को , आप आराम करिए न ."...और बेटो के पलट जाने के ......."अरे मैं तो थक गयी हु माँ आप चाय तो बना लाओ .."........माँ नौकरानी बन काम करती .....
उस सुबह हद ही हो गयी ..........पता नही कौन सा शनि आज सजा दे रहा था या पिछले जनम के बुरे करम होंगे कोई . सुबह चाय बनाते वक़्त रमा के काँपते हाथो से ढूध का पतीला गिर गया थोड़ा सा ढूध पोते की बाह पर छींटे बनकर गिर गया .बच्चा बाल सुलभ होकर जोर से चीखा .......... बेटे ने आव देखा न ताव ...माँ पर हाथ उठा दिया ........................ एक बेटे अपने बेटे का दर्द न देखा गया ............
अपने कमरे में रोती रमा ने पूरा दिन खाना नही खाया न ही घर- भर मैं कोई पूछने आया . दो दिन बाद विकास को ही सुध आई सारी बात जान लेने पर उम्र के इस पड़ाव पर पहली बार उसका पौरुष जागा
उसने जब बेटे से जवाब तलब किया तो ....जो नही होना चाहिए था वही हुआ ....................... अपने बूढ़े बदन पर नील के निशाँ लिए और लहुलुहान आत्मा से विकास रमा के पास लौट आया
इंसान दुनिया से हर कदम पर लड़ लेता हैं परहारता हैं वोह सिर्फ अपनी ही संतान के सामने !! सारी उम्र वोह खुद अपनी पत्नी को वोह सम्मान नही देता जिसकी हक़दार वोह होती हैं तो बच्चे कैसे अपनी माँ को सत्कार करे जिसको उसने उम्र भर त्तिरस्कृत होते देखा हो
रमा का हाथ थामे विकास खड़ा था उस चौराहे पर ..जहा सोच के सब रस्ते खंडित हो जाते हैं कि कहा क्या गलत हुआ ...................... और शून्य मैं ताकने के सिवा कुछ भी नही रहता ................................................ और आज जख्मी था आज दोनों के मन का कोना .........अपनी अपनी परिधि मैं .....................................................................