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20 अक्तूबर 2012

Ab kya!!


"रमा यह सब क्यों हुआ मैंने कभी सोचा भी नही था ऐसा हाय रे मैं मर क्यों नही गया यह दिन आने से पहले!!!!!!!!!!!!!!! "
आंसू भरी आँखों से विकास ने रमा के झुर्रियो  भरे हाथो को थामा  और  लाचारगी से उसकी तरफ देखने लगा .
  कोने वाले कमरे के बिस्तर पर  कृशकाय  रमा   विकास के कपकपाते हाथो को थामे  टकटकी लगाये छत  को देख रही थी
                                                 याद आने लगे उसको वोह पल जब उसने एक दुल्हन बन इस आँगन की दहलीज़ पर पाँव  रखा था , 8 भाई-बहनों में  4 नम्बर की बहु थी वो ....तब जमाना ही अलग था . शादी तब सिर्फ पति से नही पूरे परिवार से होती थी .....पति से मन का मिलन  हो न हो देह का मिलन हो जाता था और पूरे परिवार से मन मिले न मिले  सर झुकाना पड़ता था  . बहुत ही अरमान लेकर उसने भी अम्माजी की देहरी पर माथा टिकाया था ........
                                                            अम्मा जी पूरे रॉब-दाब  वाली  बेहद खुबसूरत  महिला थी क्या मजाल थी कि  कोई बहु या बेटा  उनके सामने एक शब्द भी बोल जाये . चक्करघिन्नी सी घूमती  सब बहुए  दिन भर काम मैं लगी रहती  जिसका काम अम्माजी का जरा भी नापसंद आता उसका रात को पति से पिट जाना लाजिमी था उस घर मैं .... यह रोज का तमाशा था  बस सोचना यह होता था कि आज किसका नंबर लगेगा . किसी को किसी से कोई शिकायत नही किसी को किसी से कोई हमदर्दी नही थी  .साल दर साल परिवार बढता  गया जगह कम होने लगी तो अम्मा जी ने  सबसे बड़े बेटे का चोका अलग कर दिया  शादी के 5 साल बाद रमा को भी पति के संग चार बर्तन देकर "जाओ अपनी घर गृह्स्थी खुद बनाओ चलाओ "कह कर घर से बाहर  का रास्ता देखा दिया गया था
                                      कैसे एक कमरे मैं रमा ने अपने बच्चे पाले कैसे दिन भर लोगो के स्वेटर बन कर पैसे कमाए विकास को कुछ पता नही उसका काम था दिन भर दफ्तर मैं रहना उसके बाद अम्मा जी के घर हाजिरी ....लोटने तक बच्चे नींद में होते . कभी साथ बैठकर विकास ने दो मीठे बोल भी न बोले
                ओरत दिन भर काम कर सकती हैं हैं . कम खा सकती हैं एक जोड़ी  कपड़े मैं गुजरा कर लेगी बस शाम के वक़्त अगर पति दो मीठे बोल बोल दे . लेकिन यह बात हर पुरुष को कहाँ समझ मैं आती हैं .............जीवन का योवन वो दंभ मैं गुजर देता हैं कि  कि  मैं पुरुष हूँ  सृष्टि का रच्येता!!! ओरत तो सिर्फ जमीन हैं .जबकि वोह ज़मीन ही 9 महीने तक उसके बीज को अपनी कोख में अपने खून से सींचती हैं  और तभी उसको मिलता हैं  अपना वारिस ....और उस वारिस को  वोह गोद में लिए ऐसे खुश होता हैं जैसे सारा दर्द उसी ने झेला हो  और उस नारी की पीडा  को समझने के लिए उसके साथ तब भी किसी कोने वाले कमरे का अकेला सा बिस्तर होता हैं
                                                 रमा ने भी 4 बेटो को जना .खून का असर कहो या माहौल का बेटे बाप से भी सवा सेर निकले . बेटिया  थी 4 जो उसके दुःख को जरा समझती थी . अन्दर से अकेली रमा को कब दिल का रोग लगा कोई नही जानता था . दिन थे के गुजर ही रहे थे ....आज घर मैं कोई कमी नही न पैसे की न जगह की  बस कमी थी तो आज भी उस संवेदना की जो कभी इस घर के पुरुषो ने रमा को कभी दी नही .सब बेटे भी अब बीबियो वाले थे खुद चाहे आज भी बीबी को जूतों से पिट ले पर कोई उनको कुछ कहे तो एक दुसरे का सर फोड़ने को तैयार ...और आजकल की बहुये  तो माशाल्लाह ...........खुद काम  करे न करे .बेटो के सामने रमा को लपकती झपकती" कि  माजी
बेठो न हम हैं काम  करने को , आप आराम करिए न ."...और बेटो के  पलट जाने के ......."अरे मैं तो थक गयी हु माँ आप चाय तो बना लाओ .."........माँ नौकरानी बन काम करती .....
                                             उस सुबह हद ही हो गयी ..........पता नही कौन   सा शनि आज सजा दे रहा था  या पिछले जनम के बुरे करम होंगे कोई . सुबह चाय बनाते वक़्त रमा के काँपते  हाथो से ढूध  का पतीला गिर गया  थोड़ा  सा ढूध  पोते की बाह पर छींटे बनकर गिर गया .बच्चा बाल  सुलभ होकर जोर से चीखा .......... बेटे ने आव देखा न ताव ...माँ पर हाथ उठा दिया ........................ एक बेटे अपने बेटे का दर्द न देखा गया ............
                          अपने कमरे में रोती  रमा ने पूरा दिन खाना नही खाया  न ही घर- भर मैं कोई पूछने आया . दो दिन बाद विकास को ही सुध आई  सारी  बात जान  लेने पर उम्र के इस पड़ाव पर पहली बार उसका पौरुष जागा

  उसने जब बेटे से जवाब तलब किया तो ....जो नही होना चाहिए था वही हुआ ....................... अपने बूढ़े  बदन पर नील के निशाँ लिए और लहुलुहान आत्मा से विकास रमा के पास लौट  आया  
                                         इंसान दुनिया से हर कदम पर लड़ लेता हैं परहारता  हैं वोह सिर्फ अपनी ही संतान  के सामने !!  सारी  उम्र वोह खुद अपनी पत्नी को वोह सम्मान नही देता जिसकी हक़दार वोह होती हैं  तो बच्चे कैसे अपनी माँ को सत्कार करे जिसको उसने उम्र भर त्तिरस्कृत  होते देखा हो
                                               रमा का हाथ थामे विकास  खड़ा था उस चौराहे पर ..जहा सोच के सब रस्ते खंडित हो जाते हैं  कि  कहा क्या गलत हुआ ......................  और शून्य मैं  ताकने के सिवा कुछ भी नही रहता ................................................ और आज जख्मी था  आज दोनों के मन का कोना .........अपनी अपनी परिधि मैं .....................................................................

20 टिप्‍पणियां:

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

आज दोनों के मन का कोना .........अपनी अपनी परिधि मैं .
speechless...!!

nayee dunia ने कहा…

बेहद मार्मिक

Unknown ने कहा…

Thank u Mukesh jee

Unknown ने कहा…

Thank you Upasna

Tarmeen Kaur ने कहा…

so b'fully descripted Neelima.........

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…


बदसूरत सच को खूबसूरती से उकेरती रचना !!
शुभकामनाएं !!

Unknown ने कहा…

Thank you Tarmeen ...Vibha

Meenakshi Mishra Tiwari ने कहा…

ओरत दिन भर काम कर सकती हैं हैं . कम खा सकती हैं एक जोड़ी कपड़े मैं गुजरा कर लेगी बस शाम के वक़्त अगर पति दो मीठे बोल बोल दे . लेकिन यह बात हर पुरुष को कहाँ समझ मैं आती हैं .............जीवन का योवन वो दंभ मैं गुजर देता हैं कि कि मैं पुरुष हूँ सृष्टि का रच्येता!!! ओरत तो सिर्फ जमीन हैं

man ko chhu gayi ye kahaani neelima ji.... bahut hi sahi likha hai.... aapne

सारी उम्र वोह खुद अपनी पत्नी को वोह सम्मान नही देता जिसकी हक़दार वोह होती हैं तो बच्चे कैसे अपनी माँ को सत्कार करे जिसको उसने उम्र भर त्तिरस्कृत होते देखा हो
good one...

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

एक बात आपने सही उठाई नीलिमा जी ...
जिन बच्चों ने ( खास कर लड़कों ने ) पिता को सारी उम्र माँ पर अपना अधिकार चलते देखा होगा ...पहली बात तो वह अपने लिए भी वैसी ही बीवी चाहेंगे जिन पर वो खुद हुक्म चला सकें ....
दुसरे वे अपनी माँ को भी सत्कार न दे सकेंगे ...उन्हें माँ का अनादर करने का हक़ विरासत में पिता से जो मिल जाता है ....

Unknown ने कहा…

Thank u so much meenakshi

Unknown ने कहा…

harkirat jee .samaj main yahi to hota hain .bachche ghar se hi seekhte hain ........shukriya aapka mere blog tak aane ka

dinesh gautam ने कहा…

बहुत संवेदनशीलता के साथ लिखी गई एक रचना। बधाई आपको ।

Unknown ने कहा…

shukriya Dinesh Goutam jee

बेनामी ने कहा…

speech less wah kya baat hain..

बेनामी ने कहा…

These are impressive articles. Keep up the sunny handiwork.

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…



आदरणीया नीलिमा जी
भाव पक्ष के दृष्टिकोण से अच्छी कहानी है …
यथार्थ के निकट
बधाई और शुभकामनाएं !

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…




ஜ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●ஜ
♥~*~दीपावली की मंगलकामनाएं !~*~♥
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सरस्वती आशीष दें , गणपति दें वरदान
लक्ष्मी बरसाएं कृपा, मिले स्नेह सम्मान

**♥**♥**♥**● राजेन्द्र स्वर्णकार● **♥**♥**♥**
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Dr ajay yadav ने कहा…

बेहद मार्मिक खूबसूरत कविता ...शानदार प्रस्तुतिकरण ,बधाईयाँ

Unknown ने कहा…

sunilchhabra.com,Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ,ajay yadav jee shukriyaa

Unknown ने कहा…

sunilchhabra.com,Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ,ajay yadav jee shukriyaa