योगदान देने वाला व्यक्ति

27 फ़रवरी 2014

( कुछ पन्ने )

लघु कथा
( कुछ पन्ने )
कोई पंगे मत लेना मुझसे ! कह दिया बस , लोग समझते क्या हैं खुद को जब देखो टोकते हैं लड़की हूँ तो क्या हुआ , अपने बाप के घर का खाती हूँ , नही करनी मुझे शादी अभी , कल मेरे माँ-बाप बीमार होंगे तो कौन आएगा रोटी देने ? मेरा पति भी कह देगा तेरे बाप के लिय कमाता हूँ क्या ? मुझे अपने पैरो पर खडा होना हैं फिर सोचेंगे शादी का , आजाते हैं समाज के ठेकेदार बनके , ऐसे रिश्ते ले आते जिनका मेरे साथ कोई मैच ही नही ...मुझे बस पढना हैं ...शांत रे मन शांत !! यह वक़्त भी गुजार ले .
ऋचा ने डायरी में सब लिखा और चल दी चाय बनाने नीना मासी के लिय ..... बाहर नीना मासी लड़के के गुण बता रही थी
२२ हजार कमाता हैं कॉल सेंटर में
अब गुस्सा कही तो निकलना था ना

नीलिमा शर्मा निविया 

अरे तू भी !!!

"अबे इतनी मत अकड आखिर हैं तो लड़की ही ना ! "
"तो तू लड़का हैं तो क्या कुछ भी कह सकता ?"
"ज्यादा मत बोल थप्पड़ भी लगा दूंगा !"
"इसलिय अपने साथ लाया था क्या !!"
"तुम चुप रहा करो जो मैं कहू किया करो "
"क्यों मेरी भी कोई मर्ज़ी हैं की नही "
"ज्यादा बोलती हैं साली ! जब देखो बकर बकर "
उह्ह्हू हुह्ह्हू
"जा ओ अब मुझे तो बात ही नही करनी मेरी तो किस्मत ही ख़राब "
हा हा हा हा !
"तू तो मेरी मम्मी की तरह बाते कर रही ,"
हा हा हा हा
अरे हा हा हा हा
"तू भी तो मेरे पापा की तरह लड़ रहा हैं "

फिर दोनों की एक साथ हंसने की आवाज़ से पार्क गुलजार हो उठा
 —

24 फ़रवरी 2014

पुराने ख़त

"सुन  बिटिया , समय से गर्म कपड़ो को धूप दिखा देना, कुँवरजी को बादाम जरुर भिगोकर देना आदमी लोग खुद कुछ नही मांगते खाने को , मैं ठीक हूँ फ़िक्र ना करना बस रात को जरा घुटने दर्द करते हैं और हाँ ख़त का जवाब जरुर देना एक आस लगी रहती हैं डाकिये के आने पर . आज फ़ोन आया हैं कि माँ बहुत बीमार हैं और उसने मना किया हैं बिटिया को सूचना देने के लिए कि नाहक परेशान करोगे उसको .खुश रहने दो .........जाने की तैयारी करते हुए पुराने संदूक से उनके लिखे ख़त मिले हैं और पढ़ रही हूँ एक एक ख़त जिनको मैंने पहले कभी सही से पढ़ा भी नही और माँ ने कितनी शिद्दत से चाहा होगा उनका जवाब "कब से तेरी चिठ्ठी नही आई कम से कम कुशल मंगल का ख़त तो लिख दिया कर , मुझे फ़िक्र लगी रहती हैं तेरे हरदम " माँ ने मीठे उलाहने देते हुए फ़ोन पर कहा था एक बार तो हंस पढ़ी थी निम्मी " माँ जब मेरा ख़त ना आये तो समझ लेना मैं बहुत खुश हूँ , मुझे फुर्सत ही कहाँ हैं तुमको याद करने की , जब उदास होती हूँ तब ही ख़त लिखना याद आता हैं " कहने हुए निम्मी फिर से खिलखिला दी थी .और आज फफक फफक कर रो दी रिश्तो को भी सहेजा जा सकता हैं पुराने खतो की तरह पर उसने तो फ़ोन -ईमेल की तरह फौरीतौर पर लिया 

हमेंशा , सच हैं हाथ से लिखे हुए लफ्ज़ संवेदनाओ से जुड़े होते हैं

आक्रोश

लघु कथा 

कोई पंगे मत लेना मुझसे ! कह दिया बस , लोग समझते क्या हैं खुद को जब देखो टोकते हैं लड़की हूँ तो क्या हुआ , अपने बाप के घर का खाती हूँ , नही करनी मुझे शादी अभी , कल मेरे माँ-बाप बीमार होंगे तो कौन आएगा रोटी देने ? मेरा पति भी कह देगा तेरे बाप के लिय कमाता हूँ क्या ? मुझे अपने पैरो पर खडा होना हैं फिर सोचेंगे शादी का , आजाते हैं समाज के ठेकेदार बनके , ऐसे रिश्ते ले आते जिनका मेरे साथ कोई मैच ही नही ...मुझे बस पढना हैं ...शांत रे मन शांत !! यह वक़्त भी गुजार ले .
ऋचा ने डायरी में सब लिखा और चल दी चाय बनाने नीना मासी के लिय ..... बाहर नीना मासी लड़के के गुण बता रही थी
२२ हजार कमाता हैं कॉल सेंटर में
अब गुस्सा कही तो निकलना था ना

नीलिमा शर्मा निविया 

14 फ़रवरी 2014

"दफा हो ! मरजाना



"दफा हो ! मरजाना 
जब देखो शराब पीकर किसी के भी घर में घुसा चला आता हैं " "ओये मेमसाहेब अपने साहब को ले जाओ यहाँ से " जोर से आती आवाज़ को सुनकर नंदनी घर से बाहर की तरफ दौड़ी सामने अनिरुद्ध नशे में धुत्त जमीन पर बैठा था , हाथ का सहारा देकर उसको घर लायी और सामने फोल्डिंग पलंग पर लिटाया अनिरुद्ध के मुह से नशे में धाराप्रवाह माँ - बहन की गालियाँ निकल रही थी . नंदनी की आँखे भर आई उसका यह हाल देखकर , माँ बाप का एकलोता बेटा जिसकी खूबसूरती पर उसकी सहेलिया भी रीझ उठी थी आज इस हालत में था माता पिता की मृत्यु के बाद सारा पैसा उसके हाथ में आगया था अच्छी भली बैंक की नौकरी छोड़ कर उसने अपना बिज़नस शुरू करने की सोची अनुभव की कमी दीखावे की प्रवृति और बुरी संगत ... आज घर में खाने को भी कुछ ना था वोह सुधारना चाहता था परन्तु आदते कहाँ जल्द्दी से पीछा छोडती हैं और नंदनी भी किस मुह से माता पिता के घर जाए घर से भाग कर उसने अनिरूद्ध से ब्याह किया था . कुछ तो करना होगा सोचते सोचते उसने एक निश्चय किया घर को ताला लगाकर उसने अखबार की कतरन हाथ में ली और चल पढ़ी नशा मुक्ति केंद्र ...