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12 मार्च 2014

मेरी तुलना

"आज फिर वही आलू मटर बोर हो गया मैं ऐसी सब्जियों से "
" कभी पिज़्ज़ा भी बनाया आपने कभी पास्ता बनाओ , शर्म आती हैं सब बच्चो के सामने आपना लंच बॉक्स खोलते , जब देखो पराठे और सब्जी .शामक की माँ हमेशा नयी नयी सब्जिया बनती हैं रोजाना उसका लंच बॉक्स नए व्यंजन से भरा होता हैं " 
जाओ आज मैं स्कूल नही ले जाऊँगा कुछ 
और शाश्वत की ऐसी बेरुखी तोड़ गयी सुधा को भीतर तलक 
माँ है ना " गृहशोभा ' से देखकर उसने आज पास्ता बना ही लिया लंच में और जब बेटे के सामने परोसा तो उसकी चमकती आँखे देख कर मन बाग बाग हो उठा
"बेटा आज रिपोर्ट कार्ड मिला होगा दिखाओ तो "
लो माँ पर अब शुरू मत हो जाना की बाकी बच्चो के नम्बर कितने आये , मैं मैं हूँ किसी से मेरी तुलना नाकिया करो , हर कोई पढाई में एक्सपर्ट नही होता ना "
सुधा अवाक् थी मन कह उठा था चुप

जुबान से " बेटा हर माँ भी तो विदेशी खाने बनाने में एक्सपर्ट नही होती "