योगदान देने वाला व्यक्ति

16 फ़रवरी 2015

" फिर क्या होगा "


एक बार सुनील का मन पढाई में बिलकुल नही लग रहा था \ एग्जाम पास थे | माँ बार बार गुस्सा कर रही थी कि ज़रा भी नही पढ़ते हो मार्क्स कम आयेंगे तो कितना बुरा लगेगा कक्षा में | पर कितनी बार पढ़े , हर बार अक्षर अजनबी से लगते थे | माँ संस्कृत का श्लोक याद करने को दे गयी थी
"उद्यमेन ही सिध्यन्ति ना कार्याणि ना मनोरथे\ न ही सुप्तास्ये सिंहस्य पर्वेशंति मुखे मृगा ||"
बार बार पढता था पर हर बार भूल जाता अगला शब्द क्या था | जब माँ उसे रसोई से श्लोक सुनाती तो उसे हैरानी होती कि माँ को कैसे याद होता इतनी जल्दी | जब याद नही हुआ तो उसने झुन्झुलाहट में किताब फेंक कर कहा " मुझसे नही होता याद , आपको कैसे इतना सब याद होता और याद रहता भी , माँ ऐसा करो आप ही मेरी जगह एग्जाम दे आओ कहना उसकी तबियत खराब हैं "
और हाथ बांध कर मुंह बनाकर कुर्सी पर बैठ गया | माँ को उसके भोलेपन पर हंसी आई परगंभीर होकर बोली " ठीक हैं ! मैं तो तेरे एग्जाम दे आऊंगी पर जब तुम बड़े हो जाओगे मुश्किल तो तब होगी ना |"
" तब क्या मुश्किल होगी "
"जब तुम्हारे बच्चे होंगे तो उनकी जिद पर उनके एग्जाम कौन देगा "
अब सुनील जी सोच में पढ़ गये और किताब उठा कर फिर से याद करने की कोशिश में लग गये
माँ मंद मंद मुस्कुरा रही थी

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