योगदान देने वाला व्यक्ति

4 मार्च 2013

आखिरी फैसला


"दुनिया मैं अगर आये हैं तो जीना ही पड़ेगा जीवन हैं अगर जहर तो जीना ही पड़ेगा "
ऍफ़ एम् पर गाना बज रहा था अपने अँधेरे कमरे के एक कोने में बिस्तर पर ओंधी पड़ी सुमन के आंसू थमने का नाम ही नही ले रहे थे .. एक अजीब सा आक्रोश एक , अजीब सी घुटन कुछ न कर पाने की विवशता उसको अपने चारो तरफ लपेटे थी 
एक प्राथमिक विद्यालय की सहायक अध्यापिका सुमन जब स्कूल मैं बच्चो को हिम्मत और बहादुरी का पाठ पदाती थी तो एक जोश भरी आवाज़ निकलती थी अन्याय का सामना करने की सीख देती सुमन अपने ही घर मैं किसी अन्याय के विरोध नही कर पाती थी 
कितनी चाह थी उसको कि पढ़ - लिख कर डॉ बने परन्तु घर के सीमित साधनों ने उसके सपनो की उड़ान को सिर्फ कल्पनाओ में ही खुश होने दिया और न चाह कर भी पिता ने उसको बी। टी। सी। करायी के सरकारी नौकरी मिलेगी भविष्य सुरक्षित रहेगा .
देहरादून शहर से बहुत दूर सहिया के पास बहुत ऊंचाई पर अलसी ग्राम में उसको पहली पोस्टिंग मिली ।मैदानी इलाके की सुमन को इतने ऊँचे पहाड़ पर जाना ही बहुत मुश्किल लगा ,परन्तु पिता के दबाव और सरकारी नौकरी की सामाजिक इज्जत की वजह से उसको जाना पढ़ा \ कितना अकेलापन सा लगता था उसको वहाँ । सुमन माह में एक बार देहरादून आती थी। धीरे धीरे उसने अलसी में  मन लगा लिया ।विद्ध्यालय परिसर में ही एक कमरे में रहकर उसने ग्राम की सब बड़ी और समवयस्क महिलाओ से मित्रता कर ली \समय पंख लगा कर उड़ने लगा \ पहाड़ जितने ऊँचे होते हैं वहाँ रहने वालो की उम्मीदे उतनी ही न्यून . कम में ही खुश रह जाने वाले भोले से लोग कितनी जल्दी अपना बना लेते हैं यह वहाँ  रहने वाले ही जान सकते हैं ।समय बीत रहा था साथ ही उम्र भी हर बरस नए पायदान पर पांव रख देती थी . छुट्टियों में देहरादून जाकर लम्बे समय तक रहना और 4 छोटी बहनों के साथ उनकी छोटी छोटी इच्छाए पूरी करना उसके अतृप्त मन को संतुस्ष्ट करता था ।
                                                                             माँ- बाबा को उसके विवाह के लिय उचित वर की तलाश थी राजीव अपने परिवार के साथ उसको देखने आये . सांवला सा लम्बा कद- काठी वाला राजीव उसको एक नजर में ही अपना सा लगा था उस पर उसकी केन्द्रीय सरकार के आधीन नौकरी घर भर के लिय सबसे बड़ा आकर्षण थी ।घर /परिवार के साथ सब आस- पास के लोग उसके भाग्य को सरहाने लगे ।
                                       सास बलाए लेते नही थक रही थी अपनी गोरी चिट्टी चाँद सी बहु की . अब तो सुमन को भी रश्क होने लगा अपनी ही किस्मत से जैसे जिन्दगी का सब अधूरापन ख़तम होने को हैं . कांवली रोड के नाथ पैलेस में धूम धाम से विवाह हुआ . पति ने कुछ पैसे देकर कुछ सिफारिश लागाकर उसका ट्रांसफर सहसपुर करा लिया . रोजाना बस से जाना स्कूल ख़तम होते ही लौट आना 
                                              जिन्दगी अपने आप चलने लगी थी । बहुत खुश थी सुमन राजीव को पाकर ,परन्तु समय के साथ साथ सास मांजी का लहजा बदलने लगा के विवाह को आठ माह होगये अभी तक कोई खुश खबरी ही नही < माँ बन ना हर नारी का सपना होता हैं सुमन भी माँ बन न चाहती थी उसका भी मन करता था के उसकी गोद में भी एक प्यारा सा बच्चा हो जब भी वोह इन ख्यालो में खो जाती तो उसको अपनी बाहों में एक प्यारी सी बिटिया ही दिखती थी 
                                               इश्वेर ने एक दिन उसकी पुकार सुनी और फिर से सुमन घर भर की रानी बन गयी। उसके खाने पीने से लेकर स्कूल आने जाने तक का इंतजाम नए तरीके से किया गया अब घर के बाहर से " सूमो ' उसको लेकर जाती और घर के बाहर ही छोडती थी । बसंत- विहार की सड़को पर सैर करती सुमन को अपना जीवन स्वर्ग सा लगता सास मांजी अपने आने वाले पोते के लिए ऊन लाकर मोज़े बुन रही थी सब उत्साहित थे समय आने पर  उसको आस्था नर्सिंग होम लेजाया गया लम्बी प्रसव पीड़ा के बाद उसने एक कन्या को जन्म दिया और मानो गुनाह कर दिया सबके चेहरे मुरझा गये , राजीव भी थोडा चुप हो गये यंत्रवत अपने काम में लगे रहते , बिटिया रूचि अगर र्र्र्रोती भी तो कोई जल्दी से उसको उठाने वाला भी नही था 
समय बीत रहा था . मैटरनिटी लीव ख़तम होने वाली थी अब बिटिया को कौन देखेगा यह सोच कर सुमन ने 2000 में एक महिला को रूचि को सम्हालने का काम दिया सरल स्वाभाव की ममतामयी मोनिका सुमन की सम्व्यसका थी ।उसकी अपनी भी एक बेटी थी जो 5 बरस थी और स्कूल जाती थी मोनिका के सहारे बेटी को छोड़ कर स्कूल जाती सुमन अब निश्चिन्त थी  देखते ही देखते रूचि 9 माह की हो गयी थी उसकी आँखों में माँ को देखते ही चमक आ जाती थी . परन्तु सुमन की तबियत कुछ ठीक सी नही थी हर वक़्त थकान भूख न लगना जी मिचलाना . सुमन को घबराहट होने लगी . अभी तो रूचि बहुत छोटी हैं क्या एक बार फिर से वोह ......... ओह!!!! अब क्या करे ।आजकल इस बात का पता करने के लिय हॉस्पिटल जाना जरुरी नही टी . वी ने इतना जागरूक बना दिया की एक स्ट्रिप लाओ और घर में ही पता लगा लो कि गर्भ हैं या नही . सुमन को वोह 2 पल जिन्दगी के सबसे भारी पल लग रहे थे ख़ुशी भी भीतर से तो एक अनजाना डर भी । रिजल्ट सकारात्मक देख कर उसको घबराहट होने लगी की  राजीव का न जाने क्या रिएक्शन होगा और मांजी ...उनकी सूरत यद् करके सुमन  के हाथ -पैर ही कंप कापने लगे 
                                                                     राजीव ने जैसे उसके फिर से गर्भ धारण की खबर सुनी तो ख़ुशी से फुले न समाये . जैसे उन्होंने कोई किला जीता हो एक पुरुष की जिन्दी का सबसे बड़ा क्षण  होता होगा जब उसको पपात चलता होगा कि  वोह पिता बन ने वाला हैं  एक नए जीव का आना सुखद ही लगता हैं  मांजी ने भी ख़ुशी भी जाहिर की परन्तु  उनके तीखे शब्दों ने राजीव के मन में एक संशय भर दिया कि  "इस बारी चेक करा लेना ,कही इस बार भी लड़की ही न जन दे तुम्हारी लाडली बीबी । बिना बेटे के तो स्वर्ग भी नही मिलता । आजकल वोह जमाना तो हैं नही के बेटे के इंतज़ार में 5-5 लडकिया जन दो . अब ख्याल  रखना कही अपना माँ का इतिहास न दोहरा दे यह लड़की हमारे घर में भी और तू तमाम उम्र बेटियों के ब्याह के लिए पैसा पैसा जोड़ता रहे ""


राजीव की अल्प बुद्धि लड़के लड़की का फर्क तो समझ गयी परन्तु यह नही जानपाई कि  लडकिया भी जिन्दगी में उतना ही महत्त्व रखती हैं जितना की एक लड़का . अब राजीव सुमन पर दबाव बनाने लगा की हमें पहले टेस्ट करना होगा कहा से आएगा दो दो बेटियों की पढाई से लेकर विवाह तक का खर्चा , सुमन ने बहुत कोशिश की परतु उसकी आवाज़ नक्कारखाने में तूती सी रह गयी आखिर टेस्ट कराना  ही पढ़ा और उसकी डॉ ने " जय माता की " कहकर जैसे वज्रपात कर दिया राजीव और मांजी पर .... अब सबके सुर बदल गये।।समाज की , पैसे की , अगले लोक-परलोक की दुहाई देकर उसे इस गर्भ से छुटकारा पाने के लिय मजबूर किया जा रहा था। अपनी माँ के पास जाकर उसने उनका संबल और सहारा चाहा तो माँ के आंसू उसकी मज़बूरी बयां कर गये ,5 बेटियों की माँ कैसे उसका सहारा बनती जो खुद पति के सामने एक शब्द नही बोल पाती थी 
                                                                कितनी मजबूर हो जाती हैं ना नारिया!!! कहने को कहा जा सकता हैं कि लड़ जाती अपनी अजन्मी संतान के लिय , एक माँ अपने बच्चे के लिए कुछ भी कर सकती हैं परन्तु सच एक दम अलग होता हैं यह समाज पितृ प्रधान हैं मायके का संबल न होतो स्त्री कुछ नही कर पाती बचपन से पिता और भाई के आधीन रहने वाली सहमी सी लड़की सब विवाह के बाद पति के घर जाती हैं तो जाने - अनजाने वोह उसकी जिन्दगी पर हावी हो जाते है और स्त्री उसे प्यार समझ बैठती हैं और वही प्यार जब उसकी जिन्द्दगी के हर फैसले करते हैं तो उसे घुटन होने लगती हैं परन्तु उस घुटन से निजात पाने के लिय विद्रोह करना सारे समाज से खुद को अलग करना होता हैं । किताबो में नारी स्वतंत्रता की बाते लिखना और अपनी जिन्दगी में उनको ढालना अलग अलग बाते है जो ऐसा कर पाती हैं उनका बचपन या तो बहुत सुखद होता हैं या वोह जिनके लिय यह सब बाते करना फैशन होता हैं या फिर वोह महिलाये जिनमे आग होती होती है समाज में लड़ मरने की ,लोहा बना लेती हैं खुद को .. बचपन से पिता की एक ऊँची आवाज़ पर डरने - सहमने वाली लड़की ससुराल में भी मान्यताओ रिवाजो और परम्परा के नाम पर चुप रह जाती हैं या दबे स्वर में किया गया उसका विरोध कोई माने नही रखता हैं
                                                    आज आखिर टूट गयी सुमन . हार गयी उसकी ममता इस समाज के सामने . एक नारी ने ही उसके नारीत्व का अपमान कर आने वाली नारी का कतल करा दिया वोह भी एक नारी के ही हाथो से .किसी को भी जरा भी अपराध बोध नही सिवाय सुमन के ।
उसकी जार जार बहते आंसुओ का किसी की आत्मा पर कोई फर्क नही पढ़ रहा था ।कौन कहता हैं कि  कतल सिर्फ गरीबी की वजह से होते हैं कुछ क़त्ल ऐसे होते हैं जो किसी को अपने होने की खबर भी नही होने देते अम्मा जी गुड का हलवा बनाकर रख गयी थी सिरहाने . जिसे खाने का भी मन नही किया सुमन का ।
                                                                                    अचानक तेज आवाज़ ने सुमन का ध्यान भंग किया और रूचि घुटनों चलती हुए उसके पलंग के पास खड़ी थी रूचि का मन भीग गया .. कम से कम जो आज मेरी झोली में हैं उसको तो सम्हाल लूँ . उसने मोनिका को आवाज़ लगायी कि  रूचि के लिय कुछ खाने के लिय ले आओ ।अब सुमन ने भी मूक प्रतिशोध लेने की ठान ली . उसे याद आया कि  अलसी में एक बूढ़ी मांजी ने कभी बताया था कि फलां जड़ी- बूटी खाने से नारी बंजर हो जाती हैं तो बस अब वोह और संतान ही नही जन्मेगी , कर ले कोई कोशिश जितनी चाहे ...कम से कम अपनी उस अजन्मी बेटी की आत्मा को तो न्याय दे पायेगी  ............मन ही मन सोचती सुमन के मन बंधन ढीले पढने लगे
                                       मोनिका ने केले काटकर उनके सामने रख दिए और बोली दीदी अब मैं नही आ पाऊंगी क्युकी मैं पेट से हूँ मेरे पति ने कहा हैं कि अपना ख्याल रखना ज्यादा जरुरी हैं उसने शाम को ओवर टाइम काम ले लिया हैं अब आप रूचि के लिय कोई और आया ढूढ़ ले ! 
" तुमने टेस्ट नही कराया , अगर इस बार भी लड़की हुए तो ?"
"नही दीदी अब चाहे लड़का हो या लड़की सब अपनी अपनी किस्मत लेकर आयेंगे . लड़के कौन सा आज चवर ढुलाते हैं दिल्ली वाले बस कांड को ले लो आज उन लडको की माँ उनको पैदा करने का अफ़सोस करती होगी , मुझे दूसरा बच्चा चाहिए अब चाहे बेटा  हो या बेटी कम से कम आगे जिन्दगी में  एक दुसरे का साथ तो बना रहेगा उनका , यह टेस्ट - वेस्ट तो आप जैसे पढ़े  लिखे लोगो का ही काम होता हैं "
                                                    मूक अवाक् सी सुमन उसका मुँह  देखती रह गयी . कितनी सच्ची बात कह गयी न मोनिका .कल 8 मार्च हैं और  सुमन का जन्म दिन और महिला दिवस  भी और उसने सोच लिया कि अबकी बार जरुर गर्भ धारण करेगी परन्तु अबकी बार किसी के दबाव में नही आएगी और अपने बेटी के लिय उसका सगा भाई या बहन जो भी होगा ले कर आएगी . समाज में एक छोटा सा उसका कदम ही उसकी बेटी को उसकी जिन्दगी में सफल बनाएगा वरना कल उसकी बेटी भी इसी तरह बिस्तर पर अपनी अजन्मी बेटी का अफ़सोस  मानती रहेगी ......................और खुद को कोसता रहेगा उसके मन का भीगा कोना ........ 

26 टिप्‍पणियां:

નીતા કોટેચા ने कहा…

mahila din ke liye ek bahut hi badhiya kahani likhi hai neelu.. dil rone ko aaya ..bas likhte rahena.. roj..aur ye samaj me ek ki bhi aakh khul jaye to apna likha sarthak ho jayega... bahut bahut mubarak..

nayee dunia ने कहा…

bahut badhiya kahani ...sach ko aaina dikhlati huyee...aap apni baat kahne me safal huyee nilima ji ...

Jyoti khare ने कहा…

बेटियां जीवन मैं सम्मान दिलवाती है पर पता नहीं क्यों बेटियों को मारने की बात सोचते हैं
बहुत भावपूर्ण कहानी लिखी है आपने
कहां और भाव बहुत बढ़िया है----सार्थक कहानी---बधाई

आत्मसृजन ने कहा…

bahut bahut achi kahani... dil ke andar tak gai... bahut maarmik.... aaj bhi yah hota hai :(

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

जीना है तो जीवट बन .... प्रत्येक नारी का नारा होना चाहिए ,यही सीखा गई ,आपकी कहानी की नायिका ....!!

Unknown ने कहा…

बेहतरीन पंकियां, शुभकामनाये।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

प्रतिक्रया में ज़रूरी नहीं कि शब्द मिल ही जाएँ
हाँ - कहानी में एक पूरी ज़िन्दगी शब्दों से भरी है -

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

Umda Kahani.....

Unknown ने कहा…

Neelimaji sach kahu to story padne k samya aansu rhok nahi pai parivar mai betiyon k prati mansikta ka bahvpurn chitran

Saras ने कहा…

नीलिमा अक्सर परिस्तिथियाँ अपने वश में नहीं होतीं...और हम यह जघन्य अपराध कर बैठते हैं...और इस बोझ को ढोते रहते हैं .....पर जब जागो तब सवेरा...जिस दिन यह अहसास हो जाये...जो तुम्हारी नायिका को हुआ ...उसी दिन वह बोझ उतरा समझो ......शायद यह बात लोग समझने भी लगे हैं किसी हद तक .....तुमने अपनी बात बखूबी कही ...बधाई ...

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

marmik... din badlenge.. aur badlenge kyon badal chuke hain...
mahila diwas par saari mahilaon ko dheron badhai aur shubhkamnayen..:)

राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' ने कहा…

ह्रदय के में विचरित कर रहे हर अक्स को बेहतरीन तरीके से उकेरा है आप ने बहुत बहुत बधाई इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत बढ़िया लगी आपकी यह कहानी नीलिमा ....ज़िन्दगी के रंग को अपने खूब लफ़्ज़ों में ढाला है ...

vandana gupta ने कहा…

बहुत बढिया संदेशपरक कहानी दिल को छू गयी।

आनंद ने कहा…

बहुत सुंदर कहानी है नीलिमा जी आद्योपांत पढ़ गया एक ही बार में,
"किताबो में नारी स्वतंत्रता की बाते लिखना और अपनी जिन्दगी में उनको ढालना अलग अलग बाते है "
आशा है कि नारी के जीवन के अन्य पहलुओं और अंतर्विरिधों पर आपकी कलम चलती ही रहेगी

रमा शर्मा, जापान ने कहा…

बहुत ही सुंदर....शायद सुंदर कहना भी गलत होगा बेहतरीन रचना ....कितनी अजीब सी परिस्थियों में फंसी होती है न नारी ....मुझे सुमन के दोनों निर्णय सही लगे ....काश हम समज को कुछ बदल पाते

Unknown ने कहा…

स्त्री मन के अनछुए संवेदनाओ को उजागर करती एक आला रचना ...सशक्त अभिव्यक्ति .. पढ़ते हुए पात्रो सा जुडाव सा बोध कराती है ..ऐसी ही और रचनाओ का इंतज़ार रहेग। लिखती रहो, शुभकामनाये

rita ने कहा…

Neelima .. har baar padhti hun tumhe and har baar i am astonished as to how you spoke or posted what i felt .. har baar dang reh jati hun :) कितनी मजबूर हो जाती हैं ना नारिया!.sahi kaha... kahaan se kahaan pahunch gayi duniya but phir bhi ...... Keep on sharing ..loved it ...

Unknown ने कहा…

स्त्री मन के अनछुए संवेदनाओ को उजागर करती एक आला रचना ...सशक्त अभिव्यक्ति .. पढ़ते हुए पात्रो सा जुडाव सा बोध कराती है ..ऐसी ही और रचनाओ का इंतज़ार रहेग। लिखती रहो, शुभकामनाये

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

मेरे ही मन की आवाज़ बन गई तुम्हारी ये लिखनी ..मन को झंझोरने वाले शब्द और अहसास ...बहुत खूब

Unknown ने कहा…

bahut bahut dhanywad aap sabhi mitro ka hamari kahani ko paadhne ka .aapke shabd or likhne ke liy protsahit karte hain

नीरज डंगवाल ने कहा…

!सपनों की उड़ान को मत रोको, इन्हें उड़ने दो, नए आसमान को चूने दो, क्या पता कि कौन सी उनके उड़ान आपको एक ऐसी मंजिल दे दे जो आपने कभी चाही थी.बहुत कड़वी सच्चाई बयान करती है यह कहानी.यथार्थ के नजदीक है..जिंदगी सचुच अजीव ही तो है जहाँ हर रोज एक नया उद्ध है हर रोज नयी समस्या है और नया संधान है
यही हा जिंदगी !शुभकामनायें आपको

डा. शशि सिंह ने कहा…

बहुत ही भावपूर्ण लिखा है आपने/ जीवन की सच्चाई दिखाई है, अति सुन्दर ढंग से लिखा है, सरल भाषा ......बधाई आपको इस कहानी के लिए ........

Unknown ने कहा…

thank u so much frds

POETESS ने कहा…

NICE STORY

virendra sharma ने कहा…

बनते बिगड़ते हौसलों की पोस्ट एक नै ज़मीन तोड़ ती है .