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10 अगस्त 2013

आँखे

निशा की
आँखे दर्द कर रही थी, कई दिनों से जलन हो रही थी बस हर बार खुद का ख्याल न रखने की आदत और हर बार अपना ही इलाज टाल जाना उसकी आदतों में शुमार हो गया था । सुनील आज जबरदस्ती उसको दृष्टि क्लिनिक ले ही गये .. . सामने कतार लगी थी । इतने लोग अपनी आँखे टेस्ट करने आये हैं, सोच कर निशा को हैरानी हुई । अपना नंबर आने पर भीतर गयी और डाक्टर की बताई जगह पर चुपचाप बैठ गयी .. आँखे टेस्ट करते हुए डाक्टर की आँखों में खिंच आई चिंता की लकीरों को निशा ने बाखूबी पढ़ लिया था । स्ट्रेस जांचा जा रहा था उसकी आँखों में कई अलग अलग मशीनों पर, सुनील परामर्श शुल्क चूका रहे थे अलग अलग काउंटर पर और निशा अलग अलग मशीन पर जाकर आँखे दिखा रही थी । मन चुप था कुछ कह पाने में असमर्थ सा । आखिरकार 3 घंटो के बाद डाक्टर ने अंदर बुलाया और कहा देखिये .. सुनील जी आपकी पत्नी की आँखों में काला मोतिया बिंद की शुरूवात हैं अभी कुछ कहा नही जा सकता, यह दवा डालिए और तीन माह बाद फिर से चेक-अप के लिय आइये । बस दोनों वापिस लौटे, दोनों गम में थे, अपनी अपनी सोचो की परिधि में ... कि इलाज का खर्च कितना आयेगा, घर कौन सम्हालेगा.मुझसे कैसे सम्हाला जयेगा घर , निशा की सोच थी क्या मेरी आँखे ठीक हो पायेगी ..... वैसे ही मैं अकेली हूँ मन से और अब ??? क्या सुनील मेरा ख्याल रखेंगे जिसने उम्र भर कभी पानी तक न पिया अपने हाथ से क्या अब उसका ख्याल करेगा बस अपनी गति से चल रही थी और उन दोनों का मन अपनी गति से .......... और उदास था दोनों के मन का अपना अपना कोना 

.....नीलिमा शर्मा

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